मैं क्या हूँ?
मैं शायरी का दौर हूँ, ग़ज़ल की मैं भोर हूँ।
मैं सागरो का शोर हूँ, मैं खुद में कोई और हूँ।
मैं तीर, मैं कमान हूँ, मैं जीत, मैं इनाम हूँ।
गीत की मैं गीता हूँ, मैं प्रेम की पुराण हूँ।
मैं शायरी का दौर हूँ, ग़ज़ल की मैं भोर हूँ।
मैं सागरो का शौर हूँ, मैं खुद में कोई और हूँ।
आज हूँ ख़ामोशी मैं, कल का मैं गीत हूँ।
एक नयी रीत हूँ, मैं हार की भी जीत हूँ।
मैं शायरी का दौर हूँ, ग़ज़ल की मैं भोर हूँ।
मैं सागरो का शौर हूँ, मैं खुद में कोई और हूँ।
Niceeee dear
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